भारतीय राजनीति में वर्तमान समय में दल-बदल (Defection) की राजनीति चरम पर है और यह आज नया नहीं है बहुत पहले से विभिन्न राजनीतिक दलों के व्यक्तियों द्वारा दल-बदल की प्रक्रिया निरंतर चली जा रही है और प्रत्येक राजनेता अपनी सुविधा अनुसार वैचारिकता से समझौता कर किसी भी विचारधारा के दल से हाथ मिलाकर उस दल में चला जाता है, आधुनिक भारतीय राजनीति में इस बात के कई जीवंत उदाहरण पाए जाते हैं, आज हम बात करेंगे दल परिवर्तन (Defection) के कुछ प्रमुख बिंदुओं पर-
दल-परिवर्तन (Defection) के कारण
दल-परिवर्तन (Defection) के मूल कारण क्या रहे और 1967 के चुनाव के बाद से दल परिवर्तन क्यों हुए इसके कारण निम्नलिखित बताए जा सकते हैं!
कांग्रेसियों ने किया दल-बदल का आगाज़
जाहिर है कि देश में सबसे पुराना राजनीतिक दल कांग्रेस ही है तो दल बदल (Defection) की राजनीति की शुरुआत भी कांग्रेस से होना स्वाभाविक है, भारत में राजनीतिक दलों का इतिहास 1885 में कांग्रेस दल की स्थापना से प्रारंभ होता है, स्वतंत्रता के पश्चात गांधी जी ने कांग्रेस दल को तोड़ देने का सुझाव रखा किंतु वह अपने प्रयत्न में सफल न हुए और स्वतंत्र भारत की शासन सत्ता कांग्रेस दल को प्राप्त हुई।
कांग्रेस ने अपने को सफल बनाने के उद्देश्य से विरोधी दलों को छोड़कर कांग्रेस में आने वालों का हार्दिक स्वागत किया और विभिन्न दलों के महत्वपूर्ण नेता उदाहरण स्वरूप- मुस्लिम लीग से हाफिज मोहम्मद इब्राहिम, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से टी. प्रकाशम, पी. टी. पिल्लै और अशोक मेहता कांग्रेस में शामिल हुए, इस प्रकार यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत में दल परिवर्तन (Defection) को प्रोत्साहन देने में स्वयं कांग्रेस पार्टी का बड़ा हाथ रहा आचार्य कृपलानी ने ठीक ही लिखा है कि कांग्रेस दल ने उस समय भी जब उसे विधानमंडल में पूर्ण बहुमत प्राप्त था।
विधायकों को राजनीतिक पदों का लालच देकर अपने दलों को छोड़कर कांग्रेस में सम्मिलित होने के लिए आमंत्रित किया जिसका इस बात के अतिरिक्त कोई और कारण न था कि कांग्रेस अपनी सदस्य संख्या को असीमित रूप से बढ़ाना चाहती थी।
1967 के आम चुनाव के पश्चात जब कांग्रेस दल को कुछ राज्यों में भारी पराजय का सामना करना पड़ा और मिश्रित मंत्रिमंडल का युग प्रारंभ हुआ तो कांग्रेस दल ने अपने खोए हुए प्रभुत्व को पुनः प्राप्त करने के लिए उचित और अनुचित सभी साधनों को बिना किसी शर्त के स्वीकार करना आरंभ किया और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने अपने हैदराबाद के अधिवेशन में यह निर्णय लिया कि कांग्रेस अन्य दलों की सहायता से मिश्रित मंत्रिमंडलों का निर्माण कर सकती है, तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष निजलिंगप्पा ने विभिन्न राज्यों के असंतुष्ट कांग्रेसियों से कांग्रेस में वापस आने की अपील की और किसी से दल-बदलुओं (Defection) को कांग्रेस में पुनः सम्मिलित होने की छूट मिल गई!
दल नेतृत्व का सघनीकरण
विभिन्न राजनीतिक दलों में नेतृत्व का मुट्ठी भर व्यक्तियों के हाथों में केंद्रित होने और परिणाम स्वरुप उत्पन्न होने वाले स्वामीवाद के कारण दल के ऐसे सदस्यों में जो काफी दिनों से दल में होने के बाद भी राजनीतिक पदों से वंचित रखे जाते हैं उनमें असंतोष तेजी से बढ़ता है विशेषकर यह देखकर कि दल का नेतृत्व कुछ व्यक्तियों का एकाधिकार बनकर रह गया है, उनको अपना भविष्य अंधकारमय लगने लगता है अत: उन्होंने बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों में किसी ऐसे दल में मिलना ज्यादा अच्छा समझते हैं जिनके माध्यम से वह राजनीतिक पदों को प्राप्त कर सके!
दल के सिद्धांतों के प्रति अदृढ़ता
भारत में विभिन्न राजनीतिक दलों में सिद्धांतों की दृष्टि से बहुत कुछ समता दिखाई देती है और साधारणतया विभिन्न राजनीतिक दलों के सदस्य दलों का चयन सिद्धांतों के आधार पर ना करके कुछ अन्य कारणों से करते हैं जैसे निर्वाचन में सफलता की संभावना, कोई आर्थिक लाभ, किसी पद के मिलने की आशा आदि और जब इस प्रकार के लाभ मिलने की संभावना किसी अन्य दल में अधिक दिखाई देती है तो वह एक दल को छोड़कर दूसरे दल में चले जाते हैं।
यदि सदस्यों को अपने दल के सिद्धांतों में वास्तविक निष्ठा होती तो वह अपने दल को आसानी से नहीं छोड़ते दल के सिद्धांतों में विश्वास तथा आस्था के अभाव के कारण सदस्य एक दल को छोड़कर दूसरे दल में तेजी से मिलते गए और यह प्रक्रिया पूर्णतया आज भी चल रही है और बहुत से राजनेता इसको अंगीकार कर इस रास्ते पर उत्सुकतापूर्वक चलकर स्वेच्छा से दल बदल कर रहे हैं!
आम जनमानस की दल-परिवर्तन के प्रति उदासीनता
दल परिवर्तन का एक अन्य महत्वपूर्ण कारण जनता का दलीय कार्यकलापों में अधिक रुचि न लेना विशेष कर दल-परिवर्तन के प्रति उदासीन रहना, इसमें संदेह नहीं है कि यदि जनसाधारण की ओर से दल-परिवर्तन करने वालों की निंदा तथा विरोध किया जाता तो जनमत के भय के कारण विधायक आसानी से एक दल को छोड़ने पर तैयार न होते लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि जनसाधारण की ओर से दल-परिवर्तन करने वालों के विरुद्ध आवाज उठाने की बजाय उनका रवैया दल-बदलू (Defection) सदस्यों के साथ कुछ ज्यादा सहानुभूतिपूर्ण रहता है या यूँ कहें कि वहाँ की जनता उनका इस्तकबाल करती है और विभिन्न निर्वाचनों में ऐसे सदस्यों को भारी सफलता भी मिलती है।
उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह और उनकी पार्टी भारतीय क्रांति दल को 1969 के मध्यवर्ती चुनाव में भारी सफलता प्राप्त हुई, इसी प्रकार बिहार में दल परिवर्तन (Defection) करने वाले सभी महत्वपूर्ण सदस्यों को मध्यावधि चुनाव में सफलता मिली इससे दल परिवर्तन को और अधिक प्रोत्साहन मिला और विभिन्न दलों के सदस्यों को यह विश्वास हो गया की दल परिवर्तन (Defection) मतदाताओं की दृष्टि में कोई बुरी चीज नहीं है क्योंकि ऐसा करने के बाद भी जनता का समर्थन उन्हें प्राप्त हो रहा है !
दलीय गुटबंदी
विभिन्न दलों की आंतरिक गुटबंदी भी दल-बदल (Defection) का कारण रही है दलीय गुटबंदी से सबसे ज्यादा हानि कांग्रेस पार्टी को हुई 1967 के आम चुनाव से पहले विभिन्न राज्यों में कांग्रेस दल के अंतर्गत एक नए असंतुष्ट वर्ग का विकास तेजी से हो रहा था जो दल के विरुद्ध क्रांति कर रहा था और कुछ राज्यों में दल के संगठन तथा विधान मंडल दल के बीच टकराव की स्थिति थी इसका परिणाम यह हुआ की 1967 के आम चुनाव के समय दल के प्रत्याशियों के नामांकन के संबंध में कांग्रेस दल में विशेष रूप से आंतरिक झगड़े तेजी पकड़ते गए और चुनाव के अवसर पर विध्वंस की पद्धति अपनाई गई।
बहुत से निर्वाचन क्षेत्रों में एक दल के सदस्य स्वयं अपने दल के प्रत्याशियों के खिलाफ निर्वाचन अभियान में कार्य करते हुए पाए गए, जिसका परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस दल को काफी हानि उठानी पड़ी, निर्वाचन के पश्चात भी दलीय उत्पत्ति समाप्त न हुई और विभिन्न दलों, विशेषकर कांग्रेस दल की आंतरिक गुटबंदी ने सत्तारूढ़ दल को पराजित करने के लिए सभी उपाय अपनाए इसमें दल परिवर्तन एक महत्वपूर्ण साधन था!
वर्तमान समय में भी विभिन्न राजनीतिक दलों में यह दोष व्याप्त है दलीय गुटबंदी की जद में आने के बाद अतीत से लेकर वर्तमान तक कांग्रेस पार्टी को भी भारी पैमाने पर नुकसान भी उठाना पड़ा है!
पद और धन का प्रलोभन
भारतीय राजनीति के इतिहास से लेकर वर्तमान तक यह बात प्रासंगिक है कि राजनीतिक पद तथा धन को प्राप्त करने की आकांक्षा अथवा उससे वंचित किए जाने पर उत्पन्न होने वाला असंतोष दल परिवर्तन का सबसे बड़ा कारण है विभिन्न राज्यों में होने वाले दल परिवर्तनों के अध्ययन से ऐसा पता चलता है कि अधिकांश सदस्यों ने सैद्धांतिक मतभेदों के आधार पर दल परिवर्तन नहीं किया बल्कि इसका मूल कारण राजनीतिक पद प्राप्त करने की आकांक्षा अथवा धन कमाने का लालच था।
कुछ मामलों में दल परिवर्तन (Defection) का कारण सत्तारूढ़ दल के अत्यधिक सुपात्र सदस्यों को मंत्रिमंडल में स्थान न देने अथवा अन्य राजनीतिक सम्मानों से वंचित करने से उत्पन्न होने वाला असंतोष है उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह और मुख्यमंत्री व सी० बी० गुप्ता के बीच मतभेद का तात्कालिक कारण यह था कि चौधरी चरण सिंह अपने कुछ साथियों को मंत्रिमंडल में नियुक्त करना चाहते थे जिसके लिए गुप्ता जी तैयार नहीं थे केवल इस मतभेद के कारण चरण सिंह ने अपने 13 साथियों सहित कांग्रेस दल को छोड़ दिया, फलस्वरुप केवल 18 दिनों के अंदर ही कांग्रेस मंत्रिमंडल का पतन हो गया!
1967-68 की 1 वर्ष की अवधि में दल परिवर्तन करने वाले सदस्यों में 116 दल-बदलू (Defection) सदस्यों को विभिन्न राजनीतिक पदों पर नियुक्त किया गया, यह तथ्य उल्लेखनीय है की दल परिवर्तन (Defection) करने वाले इन सदस्यों में से सात सदस्यों को मुख्यमंत्री के रूप में भी कार्य करने का अवसर मिला ।