राजनीतिक दलों तक कैसे पहुंचता है आपका निजी डेटा (Personal Data)
आज हम बात करेंगे देश में किस प्रकार से एक आम आदमी का व्यक्तिगत विवरण (Personal Data) राजनीतिक दलों तक कैसे पहुँच जाता है! देश की एक बड़ी आबादी के पास स्मार्टफोन में कई तरह के ऐप्लीकेशन होते हैं।
टैक्सी बुक करने के लिए, खाने के लिए या डेटिंग के लिए अलग-अलग ऐप मौजूद हैं। दुनियाभर में अरबों लोगों के पास ऐसे ऐप्लीकेशन होते हैं, जिससे कोई नुक़सान नहीं होता है और ए दैनिक जीवन की आवश्यकताओं को पूर्ण करते हैं।
लेकिन भारत में ए ऐप्लीकेशन संभावित रूप से आपकी जानकारी राजनेताओं को बता देते हैं। आप ऐसा चाहें या नहीं चाहें राजनेता जो भी जानना चाहते हैं, आपके बारे में जान लेते हैं।
आख़िर राजनीतिक दलों को ये सब क्यों चाहिए?
राजनीतिक दलों को आपके डेटा की जरूरत इसलिए होती है कि वो आपके सम्पर्क सूत्र के माध्यम से आपसे सम्पर्क कर आपके क्षेत्र में चल रही गतिविधियों के बारे में जानकारी व वोट का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। इससे फिल्टर रुझान राजनीतिक दलों को प्राप्त हो जाते हैं।
माइक्रो-टारगेटिंग (सूक्ष्मस्तरीय लक्ष्य)
माइक्रोटारगेटिंग- मतलब कि निजी डेटा (Personal Data) का इस्तेमाल विज्ञापन दिखाने और जानकारी देने के लिए किया जाए! यह माइक्रोटारगेटिंग चुनाव के मद्देनज़र कोई नई बात नहीं है, लेकिन पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की साल 2016 में हुई जीत के बाद ये प्रकाश में आया।
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तब पॉलिटिकल कंसल्टेंसी कैंब्रिज़ एनालिटिका पर ऐसे आरोप लगे थे कि उसने फ़ेसबुक के बेचे हुए डेटा का इस्तेमाल लोगों की प्रोफ़ाइल तैयार करने और उन्हें ट्रंप के समर्थन वाले कंटेंट भेजने के लिए किया था, हालांकि फर्म ने इन आरोपों को ख़ारिज़ कर दिया था लेकिन अपने सीईओ अलेक्ज़ेंडर निक्स को निलंबित कर दिया था।
वर्ष 2022 में मेटा ने ‘कैंब्रिज एनालिटिका’ से जुड़े डेटा उल्लंघन के एक मुक़दमे को निपटाने के लिए 725 मिलियन डॉलर का भुगतान करने की सहमति भी जताई थी। इससे लोगों के मन में ये यह सवाल उठना स्वाभाविक था क्या उन्होंने जो विज्ञापन देखा है, उसकी वजह से उनके वोट पर कोई असर पड़ा है।
दुनियाभर के देश लोकतंत्र पर पड़ने वाले इसके असर को लेकर इतने परेशान दिखे कि उन्होंने तुरंत कार्रवाई शुरू कर दी।
भारत ने दी थी चेतावती
भारत में कैंब्रिज एनालिटिका से जुड़ी एक कंपनी ने कहा था कि भारतीय जनता पार्टी और विपक्षी कांग्रेस दोनों ही पार्टियां उनके क्लाइंट हैं, हालांकि दोनों ने ही इस बात से इनकार किया था। भारत के तत्कालीन सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी भारतीय नागरिकों के निजी डेटा (Personal Data) के ग़लत इस्तेमाल करने पर कंपनी और फ़ेसबुक के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की चेतावनी दी थी।
भारत को लेकर डेटा और सिक्योरिटी रिसर्चर श्रीनिवास कोडाली कहते हैं कि वोटरों को सूक्ष्म स्तर पर निशाना बनाने (माइक्रो-टारगेटिंग) से रोकने के लिए अब तक कोई बड़े कदम नहीं उठाए गए हैं।
वो कहते हैं, ”दूसरे सभी चुनाव आयोगों ने जैसे ब्रिटेन और सिंगापुर में चुनावों के दौरान माइक्रो-टारगेटिंग की भूमिका को समझने की कोशिश की, ऐसे आयोगों ने कुछ निश्चित क़दम उठाए, जो कि आमतौर पर एक चुनाव आयोग को करना चाहिए लेकिन हम भारत में ऐसा होते हुए नहीं देखते हैं।”
लेकिन ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ स्मार्टफोन की वजह से ही आप निशाना बन रहे हैं, सरकार के पास ख़ुद ही निजी डेटा (Personal Data) का एक बड़ा भंडार है और यहां तक कि सरकार भी निजी कंपनियों को व्यक्तिगत जानकारी बेचती रही है।
श्रीनिवास कोडाली कहते हैं, ”सरकार ने नागरिकों का बड़ा डेटाबेस तैयार किया है और उसे प्राइवेट सेक्टर के साथ साझा भी किया है”।
इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक प्रतीक वाघरे कहते हैं कि इससे नागरिकों पर निगरानी का ख़तरा बढ़ा है, साथ ही इस पर उनका कोई नियंत्रण नहीं रह गया है कि कौन सी जानकारी निजी होगी और कौन सी सार्वजनिक होगी।
देश के तमाम विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले साल सरकार ने निजी डेटा (Personal Data) सुरक्षा क़ानून पारित किया था जो अब तक लागू नहीं हो सका है, कोडाली कहते हैं कि ये नियमों में ढ़ील की समस्या से है।
और इस बड़े पैमाने पर उपलब्ध डेटा का नतीजा क्या है? जानकारों के मुताबिक भारत ने दुनिया के सबसे बड़े डेटा माइन के तौर पर चुनावी साल में क़दम रखा है।
बात ये है कि कोई व्यक्ति कुछ भी अवैध नहीं कर रहा है, वो इस बात को कुछ ऐसे समझाते हैं, ” मैं ऐप से ये नहीं कह रहा कि ‘मुझे ये आंकड़ा चाहिए कि कितने यूज़र ऐप को इस्तेमाल कर रहे हैं, या उन यूजर्स का कॉन्टेक्ट नंबर दे दो।’
लेकिन मैं ये पूछ सकता हूं कि ‘क्या आपके इलाक़े में लोग शाकाहारी खाना खाते हैं या मांसाहारी? और ऐप ये निजी डेटा (Personal Data) दे देता है क्योंकि यूज़र ने पहले ही इसके लिए अनुमति दे दी है।
यह वही निजी डेटा (Personal Data) है जिसे पार्टी कार्यकर्ताओं के जरिए इकट्ठा किए गए डेटा के साथ इस्तेमाल किया जाता है, जो ये तय करने में मदद करता है कि उम्मीदवार कौन और किस समुदाय से होना चाहिए और यहाँ के लोग किसको पसंद करते हैं, यहाँ वर्तमान राजनीतिक हालात क्या हैं यह सब इसके जरिए ही निकाला जाता है।
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