करेले की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। इसके अलावा नदी किनारे की जलोढ़ मिट्टी भी इसकी खेती के लिए अच्छी होती है। करेले की खेती को अधिक तापमान की जरुरत नहीं होती है। इसकी अच्छे उत्पादन के लिए 25 डिग्री सेंटीग्रेट लेकर से 40 डिग्री सेंटीग्रेट के बीच तापमान होना चाहिए। करेले की खेती के लिए नमी बनाकर रखना बहुत जरुरी होता है, इसके लिए सिचाई की व्यवस्था करनी होती है वैसे करेले को ज्यादा सिचाई की जरुरत नहीं होती है। खेत में नमी का होना जरुरी है। करेले के बीज की बहुत सारी किस्में उपलब्ध है जिसमे से कुछ करेले की जो उन्नत किस्में ज्यादा प्रचलन में हैं उनमें कल्याणपुर बारहमासी, पूसा विशेष, हिसार सलेक्शन, कोयम्बटूर लौंग, अर्का हरित, पूसा हाइब्रिड-2, पूसा औषधि, पूसा दो मौसमी, पंजाब करेला-1, पंजाब-14, सोलन हरा और सोलन सफ़ेद, प्रिया को-1, एस डी यू- 1, कल्याणपुर सोना, पूसा शंकर-1 आदि उन्नत किस्में शामिल हैं।
करेले की बुवाई का समय अलग अलग क्षेत्रो के लिए अलग अलग है जैसे गर्मी के मौसम की फसल के लिए जनवरी से मार्च तक इसकी बुआई की जा सकती है।
मैदानी इलाकों में बारिश के मौसम इसकी बुवाई जून से जुलाई के बीच की जाती है।
पहाड़ियों क्षेत्रों में इसकी बुवाई मार्च से जून तक की जाती है।
करेले को दो तरीके से लगाया जा सकता है। एक तो बीजों द्वारा सीधा इसे खेत में बो कर, और दूसरा इसकी नर्सरी तैयार करके।
आप चाहे तो बीज लगाकर खेती करे चाहे तो नर्सरी तैयार करके।
कैसे करे खेती
- करेले की फसल की बुआई से पहले खेत की अच्छी तरह से जुताई कर लेनी चाहिए। इसके बाद पाटा लगाकर खेत को समतल बना लेना चाहिए।
- अब करीब दो-दो फीट पर क्यारियां बना लें।
- इन क्यारियों की ढाल के दोनों और करीब 1 से 1.5 मीटर की दूरी पर बीजों की रोपाई कर दें।
बीज को खेत में करीब 2 से 2 .5 सेमी गहराई पर होना चाहिए। - बीजों को बुवाई से पूर्व एक दिन के लिए पानी में भिगो कर रख दे, फिर छाया में नमी के साथ सुखाकर बीज की रोपाई कर सकते है
- खेत में करेले की पौध रोपाई करते समय नाली से नाली की दूरी 2 मीटर, पौधे से पौधे की दूरी 50 सेंटीमीटर तथा नाली की मेढों की ऊंचाई 50 सेंटीमीटर रखनी चाहिए।
करेला लत्ती यानि झाड के रूप में बढ़ता है। यदि इसे सहारा नहीं दिया जाए तो इससे सारी फसल खराब होने का डर रहता है। जब करेले का पौधा थोड़ा ही बड़ा हो जाए तो इसे लकडी, बांस, लोहे की छड़ आदि का सहारा देना चाहिए ताकि वे एक निश्चित दिशा में बढ़ सके। करेले के लिए मचान का निर्माण करे जिससे करेले लटक के ज्यादा ग्रोथ कर सके। करेले की फसल बुबाई के करीब 60 या 70 दिन में तैयार हो जाती है
समय से ही फलो की तोड़ाई कर ले जिससे मुलायम और छोटे साइज के करेले आपको प्राप्त हो सके क्योकि बाजार में करेले के कच्चे पन को ज्यादा पसंद किया जाता है
करेला जितना कड़वा होता है उसके फायदे उतने ही ज्याद है
करेले के गुण के कारण की बाजार मांग काफी रहती है। ये शुगर और डायबिटीज के मरीजों के लिए वरदान से कम नहीं है। ये शुगर कंट्रोल करने में मददगार होता है। इसका कड़वापन ही इसका सबसे बड़ा गुण है। इसमें कैरोटीन, बीटाकैरोटीन, लूटीन, आइरन, जिंक, पोटैशियम, मैग्नीशियम और मैगनीज जैसे फ्लावोन्वाइड पोषक तत्व भी पाए जाते हैं। इसके सेवन से बहुत सी बीमारियों में आराम मिलता है। इसका सेवन त्वचा रोग में भी लाभकारी होता है। ये रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाए में सहायक है। इसके सेवन से पाचन शक्ति को बढ़ाती है। पथरी रोगियों के लिए भी इसका सेवन काफी लाभकारी बताया गया है। इसके अलावा इसका सेवन उल्टी-दस्त में, मोटापा कम करने के साथ ही खूनी बावासीर व पीलिया रोग भी में आराम दिलाता है। इस तरह करेले के सेवन से बहुत सारे फायदे मिलते हैं।
आप करेले की किचन गार्डनिंग भी कर सकते है
आप बहुत ही आसानी से करेले को गमले में ऊगा सकते है
- बीज
- गमला
- मिट्टी
- खाद
खाद को कैसे तैयार करे ये हमने किसान सत्ता के एक लेख में बताया है
बीज को ३ से ४ इंच अंदर लगाए जिससे पौधा मजबूती के साथ बढे, इतना ही नहीं गमले की साइज के हिसाब से पानी भी डाले, ध्यान रहे पानी की मात्रा इतनी भी न हो की मिट्टी गीली हो जाये, बस इतना हो की नमी बानी रहे