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Phulpur Loksabha: जहाँ दिग्गजों को मिले “फूल” और “कांटे” भी

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Phulpur Loksabha
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Phulpur Loksabha: उत्तर प्रदेश ही नहीं समूचे देश में शिक्षा के लिए अपनी एक अलग पहचान रखने वाले प्रयागराज से सटी फूलपुर लोकसभा सीट (Phulpur Loksabha) पर सियासी दिग्गजों को जीत के फूल भी मिले और हार के कांटे भी। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की कर्मभूमि फूलपुर (Phulpur Loksabha) में उन्हें लोगों ने पलकों पर बिठाया। लेकिन इसी सीट पर राम मनोहर लोहिया, कांशीराम, सोनेलाल पटेल और क्रिकेटर मोहम्मद कैफ को हार का सामना करना पड़ा, अतीक अहमद को भी यहाँ की जनता ने माननीय सांसद बनाकर दिल्ली भेजा

दिग्गजों की आमद, अपराध व राजनीति का गठजोड़ और सत्ता का टूटता अहंकार, राजनीति के हर रंग फूलपुर के सियासी आंगन में खिले हैं। पंडित जवाहर लाल नेहरू की कर्मभूमि रहे फूलपुर (Phulpur Loksabha) की जनता ने कई बड़े सियासी दिग्गजों के दामन में जीत के फूल भी डाले हैं, तो कई को हार का कांटा भी चुभाया है। संगम से सटी इस सीट पर पिछली बार भाजपा जीती थी, आजाद भारत की संसदीय राजनीति में जवाहरलाल नेहरू ने अपने पैतृक जिले से सटे फूलपुर को चुनावी कर्मभूमि बनाया। तब यह सीट इलाहाबाद पूर्व कम जौनपुर पश्चिम के नाम से जानी जाती थी।

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साल 1952 में पंडित जवाहर लाल नेहरू के खिलाफ गोरक्षा आंदोलन का नारा बुलंद करने वाले प्रभुदत्त ब्रह्मचारी ने पर्चा भरा, लेकिन बेअसर साबित हुए। 1957 में फूलपुर (Phulpur Loksabha) के अलग सीट के तौर पर अस्तित्व में आने के बाद भी नेहरू ने यहाँ की नुमाइंदगी की। 1962 में उनके सामने समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया ने पर्चा भरा । दो बड़े नेताओं की टक्कर ने सुर्खियां तो खूब बटोरीं, लेकिन नेहरू की हैट्रिक नहीं रुकी और राममनोहर लोहिया को हार का सामना करना पड़ा!

नेहरू के निधन के बाद विजयलक्ष्मी के सामने जेल से भरा जनेश्वर ने पर्चा


विजयलक्ष्मी के सामने जेल से जनेश्वर नेहरू के निधन के चलते 1964 में फूलपुर में उपचुनाव हुआ। कांग्रेस ने नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित को उम्मीदवार बनाया और वह जीत गईं। 1967 के आम चुनाव में उन्होंने फिर उम्मीदवारी की। इस बार विपक्ष ने उनके सामने एक युवा छात्रनेता को उतार दिया। यह कोई और नहीं जनेश्वर मिश्र थे।

जो बाद में सियासत में छोटे लोहिया के नाम से भी जाने गए जनेश्वर मिश्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय से जुड़े एक छात्र आंदोलन के चलते जेल में थे और वहीं से उन्होंने पर्चा भरा। विजयलक्ष्मी पण्डित जहां भी प्रचार में जातीं, उनसे पहला सवाल यही होता कि आप प्रचार कर रही हैं, आपका प्रतिद्वंद्वी जेल में है, उसे यह मौका क्यों नहीं? छात्रों का समूह इसे और हवा दे रहा था।

आखिरकार विजयलक्ष्मी को सरकार से बात कर जनेश्वर को रिहा करवाना पड़ा। चुनाव में नारे लगे ‘जेल के ताले टूट गए, जनेश्वर मिश्र छूट गए।’ लेकिन इसका कुछ खास फर्क नहीं हुआ हालांकि, वोटों की लड़ाई में फूलपुर की जनता ने साथ नेहरू की विरासत को ही दिया, 1967 की मेहनत का फायदा जनेश्वर मिश्र को दो वर्ष बाद मिला। विजयलक्ष्मी के संयुक्त राष्ट्र में जाने के कारण 1969 में उपचुनाव हुआ। कांग्रेस ने नेहरू के सहयोगी केशव देव मालवीय को उतारा, लेकिन इस बार जीत जनेश्वर को मिली। विजयलक्ष्मी के बाद नेहरू परिवार ने फूलपुर से दूरी बना ली!

धीरे- धीरे खिसक गई कांग्रेस की ज़मीन

यहाँ से नेहरू परिवार के जाने के बाद से ही कांग्रेस की जमीन फूलपुर में दरकने लगी। 1971 में कांग्रेस से विश्वनाथ प्रताप सिंह जरूर जनेश्वर मिश्र पर भारी पड़े, लेकिन सन् 1977 में आपातकाल की लहर में कांग्रेस यहां भी किनारे लग गई। हेमवती नंदन बहुगुणा की पत्नी कमला बहुगुणा भारतीय लोकदल से सांसद बनीं। 1980 के चुनाव में कमला बहुगुणा ने कांग्रेस का दामन थाम लिया तो फूलपुर (Phulpur Loksabha) ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखाकर जनता पार्टी (सेक्युलर) के बी.डी. सिंह को चुना ।

सन् 1984 के चुनाव में इंदिरा गाँधी की हत्या के चलते मिली सहानुभूति ने कांग्रेस की वापसी करवाई, लेकिन इसके बाद यहां ‘हाथ’ को जनता का साथ नहीं मिला। कांग्रेस को जीत दिलवाने वाले रामपूजन पटेल ने 1989 और 1991 में जनता दल के टिकट पर जीत दर्ज की और नेहरू के बाद यहां हैट-ट्रिक लगाने वाले दूसरे चेहरे बने हालांकि रामपूजन पटेल ने बाद में पार्टी बदल ली ।

जब चुनावी जंग में शिष्य ने दी कांशीराम को मात

साल 1996 में फूलपुर (Phulpur Loksabha) के सियासी अखाड़े की रंगत अलग ही रही। 1993 में उत्तर प्रदेश में एक साथ चुनाव लड़े मुलायम सिंह यादव और कांशीराम अलग हो चुके थे। मुलायम ने यहां कांशीराम के ही सियासी चेले रहे जंगबहादुर पटेल को उम्मीदवार बनाया, इस दांव से बिफरे कांशीराम भी फूलपुर (Phulpur Loksabha) के सियासी अखाड़े में कूद गए।

बसपा से अलग होकर अपना सियासी अस्तित्व बनाने में जुटे कुर्मी नेता सोनेलाल पटेल ने भी इस कुर्मी बाहुल्य सीट से किस्मत आजमाने का फैसला किया। लेकिन, चुनाव सबसे अधिक चर्चा में रहा दाऊद के करीबी रोमेश शर्मा की उम्मीदवारी के चलते, इलाहाबाद से निकलकर मुंबई और दिल्ली में सिनेमा, सियासत और अपराध में पहचान बनाने वाले रोमेश शर्मा ने यहां खूब धन खर्च किया और अथक परिश्रम किया, हेलिकॉप्टर से प्रचार किया, लेकिन लड़ाई गुरु और चेले के ही बीच हुई, जिसमें चेला भारी पड़ा।

और रोमेश शर्मा जो इस चुनाव में काफी चर्चा में रहे उनको महज़ 3623 वोट मिले, सपा को यहां लगातार चार बार जीत मिली, लेकिन चेहरे बदलते रहे। 2004 में सपा ने माफिया अतीक अहमद को टिकट दिया और जनता ने अतीक को माननीय सांसद बनाकर दिल्ली भेजा, 2009 में एक और बाहुबली कपिल मुनि करवरिया पर जनता ने भरोसा किया और पहली बार इस लोकसभा सीट पर बसपा का खाता खुला।

फूलपुर लोकसभा सीट (Phulpur Loksabha) पर मतदाता

फूलपुर लोकसभा सीट (Phulpur Loksabha) पर कुल लगभग 20.47 लाख मतदाता हैं जिनमें से लगभग 11.11 लाख पुरुष और 9.36 लाख महिला मतदाता हैं

2014 में केशव ने खत्म किया भाजपा का वनवास

2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी की लहर में भाजपा नए जोश के साथ मैदान में आई। फूलपुर (Phulpur Loksabha) में जो काम रामलहर में नहीं हो पाया, वह मोदी लहर में हो गया। स्थानीय चेहरे केशव प्रसाद मौर्य ने यहां 3 लाख से अधिक वोटों से जीतकर कमल खिलाया। 2014 में यहाँ से कांग्रेस के टिकट पर क्रिकेटर मोहम्मद कैफ बैटिंग के लिए उतरे, लेकिन जनता ने उन्हें न सिर्फ आउट कर दिया बल्कि उनकी जमानत भी जब्त हो गई। केशव प्रसाद मौर्य को जीत का इनाम मिला।

उनको भाजपा के संगठन में प्रदेश का कप्तान बनाया गया, 2017 में उनके सिराथू से विधायक और डिप्टी सीएम बनने के चलते 2018 में इस सीट पर लोकसभा उपचुनाव हुआ, भारतीय जनता पार्टी ने केशव के करीबी कौशलेंद्र पटेल को उतारा, समाजवादी पार्टी ने नागेंद्र सिंह पटेल को प्रत्याशी बनाया, बसपा ने सपा को समर्थन देने का फैसला किया।

मैदान में समीकरण बदलने के लिए माफिया अतीक अहमद भी उतरा, लेकिन केंद्र से लेकर प्रदेश तक की सत्ता होने के बाद भी भाजपा यह सीट नहीं बचा सकी, और पांचवी बार यहां पर साइकल दौड़ी! हालांकि, 2018 का सपा-बसपा का प्रयोग 2019 में सफल नहीं हुआ, 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा की केसरी देवी पटेल ने इस सीट से जीत दर्ज की।

फूलपुर लोकसभा (Phulpur Loksabha) का जातीय समीकरण

यहां की पांच विधानसभा सीटों में इलाहाबाद उत्तर, पश्चिम, फूलपुर (Phulpur Loksabha) और फाफामऊ पर भाजपा और सोरांव पर सपा का कब्जा है। सामाजिक समीकरण यहां जीत की जमीन तय करते हैं। पिछले ढाई दशक में हुए 11 चुनावों में 9 बार यहां से पटेल-कुर्मी नेताओं ने जीत दर्ज की है! इस सीट पर इस बिरादरी के लगभग 3 लाख मतदाता हैं। मुस्लिम, यादव और दलित भी यहां की-फैक्टर हैं, जबकि इस सीट पर 1 लाख से अधिक ब्राम्हण मतदाता भी हैं।

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