कौन हैं मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge)?
मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge): साल 1945-46 की बात है, आजादी की लड़ाई अपना अंतिम रूप ले रही थी तब हैदराबाद में एक जगह थी बराबट्टी जो अब कर्नाटक में है। हैदराबाद के निजाम कर कुछ सैनिक बराबट्टी के गांव जाते हैं घर के बाहर एक बच्चा खेल रहा था।
क्यों मल्लिकार्जुन खड़गे बने राजनेता?
उम्र करीब 3 साल रही होगी, पिता काम पर गए थे, घर में मां और बहन थी। निजाम के सैनिकों ने मां और बहन को जिंदा जला कर मार डाला और बच्चा सब देखता रहा। वह दर्दनाक दृश्य उसकी आंखों में जीवन भर के लिए कैद हो गया था।
वह बच्चा आगे चलकर राजनीति में आया, उसने कर्नाटक के नए नेताओं में अपनी जगह बनाई, पार्टी आलाकमान की सबसे वफादारो में गिना जाने लगा और 19 अक्टूबर 2022 को यही बच्चा देश की सबसे पुरानी पार्टी के अध्यक्ष के पद पर चुनाव जीत जाता है। नाम है मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge)।
पहले लोकसभा और राज्यसभा में सरकार के खिलाफ अक्सर मोर्चा खोलने वाले मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) को जानने वाले बताते हैं कि वह बेहद शांत स्वभाव के थे।
कैसे की अपने राजनितिक कैरियर की शुरुआत?
गरीबी में बचपन बीता, मां की मौत के बाद खड़गे अपने पिता के साथ गुलबर्ग चले गए। पिता एक मील में काम करते थे, वहीं खड़गे की शुरुआती पढ़ाई हुई और उसके बाद वहीं के सरकारी कॉलेज में उन्होंने दाखिला ले लिया।
पढ़ाई के साथ-साथ राजनीति की शुरुआत की शिक्षा उन्हे इसी कॉलेज से मिली। खड़गे ने पहली बार जीवन में चुनाव कॉलेज से ही लड़ा था तब उन्हें छात्र संघ का महासचिव चुना गया था। कॉलेज की राजनीति के दौरान खड़गे मजदूरो के अधिकारों की लड़ाई में हिस्सा लेने लगे थे।
खड़गे जब तक पूरी तरह से राजनीति में उतरे तब तक वह संयुक्त मजदूर संघ के प्रभावशाली नेता के तौर पर अपनी पहचान बना चुके थे। साल 1979 में कांग्रेस में ऑलगार्ड्स और इंदिरा गांधी के बीच संघर्ष चल रहा था और इसी साल खड़गे ने कांग्रेस ज्वाइन किया था उस समय मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) की उम्र 27 साल थी।
कहाँ से बने पहली बार विधायक?
उन्हें कर्नाटक के नेता देवराज उर्स ने सपोर्ट किया। देवराज ने पहली बार खड़गे को विधानसभा का टिकट दिलवाया। 1972 में खड़गे राज्य की गुरमितकल सीट पर पहली बार विधायक चुने गए। खड़गे के लिए यह महज़ शुरुआत थी। 1972 के बाद खड़गे लगातार नौ बार इसी सीट से विधायक चुने गए।
पहली बार विधायक बनते ही देवराज उर्स ने उन्हें मंत्री बना दिया। 1976 में खड़गे पहली बार प्राथमिक शिक्षा विभाग में राज्य मंत्री बने। इसके बाद खड़गे लगातार कर्नाटक सरकार के अलग-अलग विभागों का जिम्मा संभालते रहे। खड़गे के बारे में एक बात कांग्रेसी और उनके विपक्षी भी कहते हैं की सियासी काजल की कोठरी में शासक से ज्यादा रहने के बावजूद ऊपर कभी कोई दाग नहीं लगा।
साल 1980 में देवराज के बाद गुंडू राव राज्य के मुख्यमंत्री बने। मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) को कैबिनेट मंत्री बनाया गया। खड़गे उस समय “भूमि सुधार करिए” एक बिल लेकर आए, कहा जाता है कि इस बिल के बाद किसानों को उनके अधिकार मिल सके।
यह पहला मौका था जब स्पॉटलाइट खड़गे पर थी। 1999 में सरकार का जिम्मा एसएम कृष्णा के हाथों में आ गया, वही एसएम कृष्णा जिसे मनमोहन सरकार ने कांग्रेस का विदेश मंत्री बनाया था। एसएम कृष्णा की सरकार में गृह विभाग खड़गे को मिला।
खड़गे के शासनकाल में कुख्यात वीरप्पन ने कन्नड सिनेमा के जाने माने एक्टर और गायक राजकुमार का अपहरण किया था। कांग्रेस समर्थक इस मामले को हैंडल करने के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) की तारीफ भी करते हैं। खड़गे को यूं ही गांधी परिवार का वफादार नहीं कहा जाता है। खड़गे के पांच बच्चे हैं दो बेटी और तीन बेटे।
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इसे महज इत्तेफाक तो नहीं कहा जा सकता है कि एक बेटी का नाम प्रियदर्शनी है जो कि इंदिरा गांधी का भी नाम था और दो बेटों का नाम प्रियांक और राहुल है। खड़गे का एक बेटा प्रेम कर्नाटक में विधायक है इसके अलावा उनकी बेटी प्रियदर्शनी डॉक्टर है।बेटा राहुल साइंटिस्ट है।
साल 2005 में खड़गे पर भरोसा जताते हुए कांग्रेस ने उन्हें कर्नाटक के कांग्रेस कमेटी का चीफ भी बनाया था। साल 2008 में कर्नाटक में कांग्रेस की हार हुई लेकिन मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) चुनाव जीत गए, लेकिन गांधी परिवार की गुड बुक्स में शामिल होने का इनाम खड़गे को मिला, लेकिन खड़गे के साथ धोखा हुआ।
2013 में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई इस बार किसी को संदेह नहीं था कि खड़गे को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा लेकिन सिद्धारमैया जनता दल छोड़ के कांग्रेस में आ गए थे और आलाकमान ने एक बार फिर खड़गे के ऊपर सिद्धारमैया को चुना। इस बार भी खड़गे ने कोई सवाल नहीं पूछा।
2013 के बाद कांग्रेस का ग्राफ गिरा पर खड़गे का ग्राफ लगातार बढ़ता चला गया। 2019 में खड़गे लोकसभा चुनाव हार गए और यह उनकी राजनीतिक कैरियर की पहली हार थी। लेकिन इस बार भी कांग्रेस के आलाकमान की मेहरबानी खड़गे पर बरसी और उन्हे 2020 में राज्यसभा भेजा गया।
खड़गे सिर्फ राज्य सभा नहीं गए बल्कि 2021 में सदन में विपक्ष के नेता भी बनाए गए। खड़गे इसी साल 80 साल के हुए हैं 21 जुलाई को खड़गे अपना जन्मदिन मनाते हैं।
इस साल भी दिल्ली से लेकर कर्नाटक के गुलबर्ग तक जन्मदिन की तैयारी थी लेकिन मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) ने कहा कि जन्मदिन कोई जश्न नहीं होगा वजह यह थी कि इसी दिन प्रवर्तन निदेशालय (इडी) ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को नेशनल हेराल्ड केस में पूछताछ के लिए बुलाया था।
खड़गे ने जन्मदिन नहीं मनाया। अपनी नेता के लिए सड़क पर उतरकर प्रदर्शन किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में साल 2022 में राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) को जीत मिली और वे अध्यक्ष बन चुके हैं। साल 2024 के लोकसभा चुनाव इन्हीं के नेतृत्व में लड़ा गया।
कौन हैं मल्लिकार्जुन खड़गे जिनके अध्यक्ष बनते ही बदल गई कांग्रेस की तस्वीर – Tweet This?