भारत (India) विश्व का सबसे बड़ा जनतांत्रिक देश है इसकी राजनैतिक व्यवस्था स्वतंत्रता, समानता और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों पर आधारित है संविधान में धर्म, जाति, क्षेत्र, शिक्षा, आर्थिक स्थिति आदि पर ध्यान दिए बगैर सभी नागरिकों को समान अधिकार दिए हैं प्रत्येक नागरिक को वोट देने, चुनाव लड़ने, राष्ट्रपति से लेकर ग्राम प्रधान तक किसी भी पद को प्राप्त करने का अधिकार दिया गया है संप्रभुता अर्थात राजनैतिक सत्ता अंतिम रूप से जनता में निवास करती है और वह इस शक्ति का प्रयोग अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से करती है अतः निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव व्यवस्था का होना प्रतिनिधात्मक जनतंत्र की स्थापना के लिए अनिवार्य दशा है!
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 में एक निर्वाचन आयोग के गठन का प्रावधान किया गया जिसे राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति के पद से लेकर संसद तथा राज्य विधान मंडलों के चुनाव कराने का कार्य सौंपा गया है इस कार्य में सहायता देने के लिए प्रत्येक राज्य में अलग-अलग निर्वाचन आयोग है जो भारत (India) के भारत निर्वाचन आयोग के निर्देशन और नियंत्रण में कार्य करते हैं!
भारत (India) निर्वाचन आयोग एक संवैधानिक तथा अर्ध न्यायिक स्वतंत्र प्राधिकरण है, देश में चुनाव कराने के अतिरिक्त चुनाव-विषयक विवादों का निर्णय करने का अधिकार भी निर्वाचन आयोग को ही दिया गया है यह आयोग की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है कि देश में ईमानदारी के साथ बगैर किसी दबाव और पक्षपात के चुनाव संपन्न कराया जाए!
1952 से 2019 तक भारत (India) में लोकसभा के 17 चुनाव हुए कुल मिलाकर या कुशलता के साथ संपन्न हुए किसी चुनाव का ईमानदारी से संपन्न होना मूल रूप से मतदाताओं के व्यवहार पर निर्भर करता है अगर चुनाव में बोगस वोटिंग होती है ताकत का इस्तेमाल होता है वोटो की खरीद स्वरूप होती है मतदाताओं को विरोधियों द्वारा वोट डालने से रोका जाता है कोई व्यक्ति या समूह मतपेटी को लेकर भाग जाता है तो इन सबके लिए मूल रूप से वे मतदाता जिम्मेदार हैं जो इन गतिविधियों में लिप्त होते हैं!
India में चुनावी प्रक्रिया को संचालित करने के लिए भारतीय संसद ने 1950 में “पीपुल्स रिप्रेजेंटेशन एक्ट” बनाया था जो समय-समय पर आने वाली समस्याओं, मांगो और सुझावों को दृष्टिगत रखते हुए बराबर संशोधित किया जाता रहा है प्रत्येक आम चुनाव अपने में एक प्रयोग और नया अनुभव होता है उसमें नई-नई प्रशासनिक समस्याएं मतदान प्रक्रिया की कमियां तथा मतदान-व्यवहार के नए-नए ढंग सामने आते हैं इन सब को दृष्टिगत रखते हुए निरंतर चुनाव सुधार की मांग होती रहती है!
आमतौर से माना जाता है कि प्रथम तीन चुनाव बड़ी हद तक स्तरीय रहे और उनमें भ्रष्ट तरीकों का बहुत कम इस्तेमाल हुआ इसका मूल कारण यह था कि स्वतंत्रता के 10-15 वर्षों बाद तक बड़ी संख्या में ऐसे लोग जीवित थे जो राष्ट्रीय आंदोलन से निकले थे और जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए हर प्रकार की कुर्बानियां दी थी अतः वे लोग और उनकी पार्टियाँ मात्र राजनीतिक सत्ता के लिए अनैतिक और असंवैधानिक तरीकों को अपनाने की सोच भी नहीं सकते थे!
समय के साथ परिस्थितियाँ बदलती गई और राजनीतिक नैतिकता का ह्रास होता गया, सत्ता के लिए नैतिक मूल्य और मान्यताएं बहुत पीछे छूट गई जीवन के हर क्षेत्र की तरह राजनीति का केंद्रीय बिंदु “सेवा” नहीं “सत्ता” हो गया, और राजनीतिक सत्ता को प्राप्त करने के लिए भ्रष्टाचार एक प्रभावी साधन बन गया, धीरे-धीरे राजनीति व राजनैतिक दलों का तथा मतदाताओं का नैतिक स्तर तेजी से गिरने लगा !
India में चुनावी व्यवस्था की समस्याएं
वर्तमान चुनावी व्यवस्था में जो समस्याएं दुर्बलताएं और दोष पाए जाते हैं वह भी धीरे-धीरे विकसित हुए हैं इनमें से कुछ प्रमुख समस्याओं का उल्लेख आगे किया जाएगा!
पूर्व निर्वाचन आयुक्त टी.एन. सेशन ने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए ऐतिहासिक कदम उठाए और यह व्यवस्था की कि चुनाव को धन, बल, धर्म, जाति आदि से अप्रभावित रखा जाए इसमें कोई संदेह नहीं है कि उन परिवर्तनों से चुनावी माहौल में बदलाव आया,लेकिन जितने अधिक सुधार किया जा रहे हैं उतनी ही नई-नई समस्याएं उत्पन्न होती जा रही हैं इसमें दोष भारत निर्वाचन आयोग का नहीं है दोष उनका है जो इस पूरी प्रक्रिया में भागीदार है मुख्य रूप से राजनेता, राजनैतिक दल, प्रशासनिक अधिकारी और मतदाता जिम्मेदार हैं, जिनसे भारत निर्वाचन आयोग द्वारा बनाए गए कानूनों के अनुसार आचरण करने की अपेक्षा की जाती है इन सब के सहयोग के बिना कोई भी चुनाव सुधार प्रभावी नहीं हो सकते !
ऐसा लगता है कि वर्तमान में राजनीति ने पेशे अथवा व्यापार का रूप धारण कर लिया है अधिकांश लोग यह सोचते हैं कि अगर एक बार विधानसभा या लोकसभा का चुनाव जीत गए तो समाज में प्रतिष्ठा तो बढ़ ही जाएगी साथ में हर तरह की सुविधा और ज्यादा से ज्यादा धन अर्जित किया जा सकेगा, इस प्रकार चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार और राजनैतिक दल किसी भी तरह चुनाव जीतना चाहते हैं भले ही गलत तरीका क्यों ना अपनाना पड़े!
वर्तमान में चुनाव व्यवस्था मुख्य रूप से निम्नलिखित दोषों से ग्रसित है!
धन की बढ़ती हुई भूमिका
प्रत्येक निर्वाचन में हर उम्मीदवार चुनाव अभियान और प्रचार में करोड़ों रुपए खर्च करता है प्रारंभ में हर पार्टी अपने उम्मीदवार को चुनाव में खर्च के लिए आर्थिक अनुदान देती थी अब उम्मीदवार चुनाव में होने वाले व्यय के अतिरिक्त टिकट प्राप्त करने के लिए भी पार्टी को भारी रकम देता है।
चुनाव अपने आप में एक बड़ा निवेश बन गया है जिसका लाभ जीवन भर मिलता रहेगा इसलिए आम आदमी चाहे जितना योग्य ईमानदार और समाजसेवी क्यों ना हो चुनाव लड़ने का साहस ही नहीं करता राजनीतिक दल भी उम्मीदवारों का चयन करते समय सबसे पहले उम्मीदवार की आर्थिक स्थिति को देखते हैं इस बात का प्रमाण यह है कि वर्तमान लोकसभा में अनेक सदस्य करोड़पति हैं!
बाहुबलियों की अधिकता/राजनीति का अपराधीकरण
India में प्रारंभ से ही चुनाव में विभिन्न क्षेत्रों में प्रभावशाली व्यक्ति सक्रिय भूमिका अदा करते हैं जैसे जमींदार, तालुकदार व बाहुबली विभिन्न जातियों के मुखिया आदि, धीरे-धीरे बाहुबलियों ने दूसरों को चुनाव लड़ाने के बजाय खुद चुनाव लड़ना शुरू कर दिया और आज की स्थिति यह है कि बड़े-बड़े अपराधी जिन पर अनेक कत्ल, लूट-मार, बलात्कार के आरोप हैं वह बड़ी संख्या में चुनाव लड़ रहे हैं और चुनाव जीतकर देश के सदनों में क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं उनके पास धन भी है और बल भी।
इसलिए बहुत से मतदाता उनके डर की वजह से उन्हें वोट देते हैं, इस चुनावी आतंकवाद के कारण अच्छे लोग चुनाव से दूर होते जा रहे हैं आश्चर्य की बात यह है कि सभी राजनीतिक दल इन अपराधियों को अपनी पार्टी में शामिल करने के लिए आतुर रहते हैं, क्योंकि इन अपराधियों का चुनाव जीतना लगभग निश्चित होता है यह अपराधी और उनके कार्यकर्ता डरा धमका कर मतदाताओं को अपने पक्ष में वोट करने के लिए, विरोधियों को वोट डालने से रोकने के लिए, पोलिंग बूथ पर अव्यवस्था उत्पन्न करने आदि का काम करते हैं वोटरों को रिझाने के लिए पैसा और शराब भी बॉटते हैं!
सांप्रदायिकता और जातिवाद
वर्तमान समय में लगभग सभी राजनीतिक दल हर चुनाव में धर्म और जाति के आधार पर मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने का प्रयास करते हैं परिणामस्वरुप विभिन्न धर्मो के नेता संवेदनशील धार्मिक विवादों और मुद्दों को मतदाताओं के सामने लाते हैं और किसी विशेष उम्मीदवार, दल को वोट देने की अपील करते हैं।
धर्म की तरह जाति भी चुनाव में सफलता पाने का एक प्रभावी उपकरण है हर चुनाव में राजनेताओं द्वारा विभिन्न जातियों के साथ किए गए अन्यायों को उजागर किया जाता है और उनके समान विकास का आश्वासन दिया जाता है इस प्रकार विभिन्न धार्मिक समूह और जाति समूहों के बीच तनाव और उन्माद उत्पन्न करके राजनीतिक दल अपना स्वार्थ सिद्ध करने का प्रयास करते हैं साधारण जनता को संवेदनशील धार्मिक और जातीय मुद्दों पर उत्तेजित करने के कारण हर चुनाव से पहले, चुनाव के दौरान और चुनाव के बाद तक सांप्रदायिक दंगे।
जातीय टकराव और हिंसात्मक घटनाएं होती रहती हैं इसके फलस्वरुप सामाजिक तनाव बढ़ता है आत्म सुरक्षा का भय उत्पन्न होता है कानून व्यवस्था की समस्या उत्पन्न होती है और सामाजिक शांति और पारस्परिक विश्वास एक प्रश्न चिन्ह बन जाता है!
राजनैतिक दलों की बढ़ती हुई संख्या और गठजोड़
भारत निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों को तीन श्रेणियां में विभाजित किया है मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय दल, मान्यता प्राप्त राज्य स्तरीय दल और पंजीकृत राजनीति दल होती हैं जिनका अपने नियम व कायदे होते है जिसके आधार पर भारत निर्वाचन आयोग उनका पंजीकरण करता है, लेकिन उन्हें वह सुविधा नहीं मिलती जो मान्यता प्राप्त दलों को दी जाती है आमतौर से इन दलों की सदस्य संख्या बहुत कम होती है और इनका निर्माण किसी सामाजिक मुद्दे, समस्या के निराकरण के लिए किया जाता है उनका कार्य क्षेत्र एक राज्य तक सीमित होता है!
1952 के चुनाव के बाद से अब तक प्रत्येक चुनाव में रजिस्टर्ड राजनैतिक दलों और उनके उम्मीदवारों की संख्या बढ़ती रही है कभी-कभी तो यह उम्मीदवार अपने व्यक्तिगत प्रभाव,सेवा अथवा धन के सहारे चुनाव जीत भी जाते हैं अधिकांशतः यह खुद चुनाव जीतने के लिए नहीं वरन अन्य उम्मीदवारों के वोट काटने के लिए खड़े होते हैं।
इससे जनता के बीच उनका प्रचार होता है और उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा भी बढ़ती है प्राय: राजनीतिक दल अपने निकटतम प्रतिद्वंदी के वोट कटवाने के लिए रजिस्टर्ड दलों के उम्मीदवारों को पैसा देकर और विपरीत विचारधारा वाले दल के साथ गठजोड़ कर चुनाव में खड़े होते हैं इससे चुनाव में आर्थिक भ्रष्टाचार बढ़ता है अच्छे उम्मीदवारों की सफलता में बाधा पड़ती है तथा समदलीय सरकार के गठन में कठिनाई होती है क्योंकि ऐसे सदस्यों को खरीदने और बेचने में देर नहीं लगती क्योंकि वे बेजमीर होते हैं।
नैतिक मूल्यों और मान्यताओं का ह्रास (अभाव)
चुनावचुनाव में होने वाले विभिन्न प्रकार के भ्रष्टाचार का सबसे महत्वपूर्ण कारण व्यक्तियों, समूहों का नैतिक पतन है व्यक्ति अपने स्वार्थ तथा धन और पद की लालसा में हर बड़ा तरीका अपनाने के लिए तैयार रहता है झूठ बोलना, धोखा देना, लूट-घसोट करना, हत्या हर प्रकार का अपराध करने में कोई संकोच नहीं करता!
नैतिकता का पतन सबसे ज्यादा राजनैतिक क्षेत्र में हो रहा है यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें सफल होकर असीमित धन, कीर्ति, सामाजिक प्रतिष्ठा, और ऐश-ओ-आराम मिलता है अतः राजनीति में सफलता के इच्छुक लोग सब कुछ करने के लिए तैयार हैं चाहे वह कितना ही अनैतिक, धर्म-विरोधी और मानवता विरोधी कार्य क्यों न हो ! इस सोच ने कि यदि लक्ष्य प्राप्त हो जाए तो साधन स्वतः न्यायोचित कहलाते हैं, ऐसे लोगो ने पूरी राजनैतिक व्यवस्था को पथभ्रष्ट कर दिया है सच यह है कि स्वस्थ सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्था की स्थापना नैतिक मूल्यों को पुनर्जीवित किए बिना संभव न हो सकेगी !
सरकारी तंत्र का दुरुपयोग
ऐसा कहा जाता है कि प्रत्येक चुनाव में सरकारी मशीनरी सत्तारूढ़ दल को India में चुनाव जिताने के लिए हर संभव मदद देती है हर राज्य में चुनाव कराने के लिए भारत निर्वाचन आयोग उस राज्य के अधिकारियों, कर्मचारियों की सहायता से चुनाव कराता है, ये कर्मचारी पोलिंग बूथ पर मतदाताओं को किसी उम्मीदवार विशेष को वोट देने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं, चुनाव का समय समाप्त होने के बाद भी अपने पक्ष के मतदाताओं से वोट डलवा सकते हैं और विरोधी मतदाताओं को कोई बहाना बनाकर मतदान से वंचित कर सकते हैं!
इस तरह का पक्षपात पहले बहुत ज्यादा होता था लेकिन वर्तमान चुनावी प्रबंधन ऐसा है कि आमतौर से अब ऐसा कम ही हो पाता है इसमें संदेह नहीं है कि चुनाव प्रचार-प्रसार में सरकारी तंत्र सत्तारूढ़ दल की विभिन्न तरीकों से पूरी मदद करता है जैसे सत्तारूढ़ दल की उपलब्धियों का मीडिया के माध्यम से प्रचार, तरह-तरह के विज्ञापन तथा सरकारी और निजी फंड के द्वारा उसको लाभान्वित करना इत्यादि!
स्वाभाविक है कि जब सत्तारूढ़ दल का कोई मंत्री चुनाव प्रचार के लिए किसी निर्वाचन क्षेत्र में जाता है तो उच्च प्रशासनिक पदाधिकारियों से लेकर नीचे के कर्मचारियों द्वारा जिस तरह उसका स्वागत किया जाता है और उसकी चुनाव मीटिंग को सफल बनाने के लिए जो सुविधाएं दी जाती है वह विपक्ष को नहीं मिल पाती है ।
इन सब के चलते आज भारतीय राजनीति की दिशा और दशा परिवर्तित नजर आ रही है क्योंकि आज की राजनीति में उपरोक्त बिंदु हावी हैं, देश की साक्षरता दर में जबरदस्त वृद्धि के बावजूद भी आम जनमानस की मतदान में रुचि कम ही दिखती है अभी हाल में देश में लोकसभा आम चुनाव चल रहे हैं अब तक संपन्न दो चरणों के मतदान मेें भी गिरता हुआ मत प्रतिशत इस बात की तज़दीक करता है!
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र (India) में चुनाव पर अविश्वास क्यों? – Tweet This?