भारतीय राजनीति में दल बदल (Defection) आज की नई समस्या नहीं है दल बदल भारतीय राजनीति का पुराना इतिहास रहा है और इनमें लोग एक दल से जनप्रतिनिधि चुने जाने के बाद विभिन्न कारणों से अपना दल बदल (Defection) लेते हैं फिर चाहे वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस हो, समाजवादी पार्टी हो, जनता दल (यूनाइटेड) हो या फिर महाराष्ट्र की राजनीति में स्वर्गीय बालासाहेब ठाकरे के नेतृत्व में स्थापित राजनीतिक दल शिवसेना हो, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से टूटकर बना एनसीपी हो, आज शिवसेना के भी दो भाग हो गए हैं और एनसीपी के भी दो भाग हो गए हैं।
राजनीतिक अर्थों में दल बदल (Defection) का अर्थ किसी व्यक्ति का उस राजनीतिक दल को जिसके टिकट पर वह निर्वाचित हुआ है छोड़कर किसी अन्य दल में सम्मिलित हो जाना है दल से संबंध विच्छेद करने की प्रक्रिया को फ्लोर क्रॉसिंग भी कहा जाता है इंग्लैंड में “हाउस ऑफ कॉमंस” में विरोधी दल तथा सरकारी दल के सदस्य आमने-सामने बैठते हैं और यदि उनमें से किसी दल का सदस्य एक तरफ से दूसरी तरफ जाता है तो उसे बीच के रास्ते को पार करके जाना होता है इसीलिए वहां इस प्रक्रिया को “फ्लोर क्रॉसिंग” का नाम दिया गया है।
भारतीय राजनीति में दल बदल (Defection) की शुरुआत
भारत में 1967 के आम चुनाव के पश्चात दल परिवर्तन इतनी तेजी से शुरू हुआ है कि इसने एक गंभीर राजनीतिक समस्या का रूप धारण कर लिया चौथे आम चुनाव के पश्चात कांग्रेस दल के राजनीतिक एकाधिकार का अंत हो गया और उस समय सोलह राज्यों में जिनमें चुनाव हुए आठ राज्यों में कांग्रेस पार्टी पूर्ण बहुमत न प्राप्त कर सकी यह राज्य बिहार, केरल, तमिलनाडु, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल थे इनमें से छः राज्यों में विरोधी दलों ने न्यूनतम कार्यक्रम के आधार पर संयुक्त होकर सरकार का गठन किया।
कुछ राज्यों में कांग्रेस पार्टी को सीमांत बहुमत मिला और किसी प्रकार कांग्रेस ने मंत्रिमंडल का निर्माण किया, ऐसे राज्यों में विरोधी दलों ने सामूहिक प्रयत्नों द्वारा कांग्रेसी सरकारों को अपदस्थ करने का अभियान चलाया, चुनाव के तुरंत पश्चात उत्तर प्रदेश, हरियाणा तथा मध्य प्रदेश में कांग्रेस दल ने मंत्रिमंडल का गठन किया लेकिन कुछ ही दिनों बाद कांग्रेस में तोड़फोड़ के फलस्वरुप कांग्रेस के मंत्रिमंडल के स्थान पर विरोधी दलों की मिश्रित सरकारों का गठन हुआ।
आरंभ में विरोधी दल पारस्परिक समझौता करके सरकार बनाने के लिए तैयार हो गए उन सब का सामान्य लक्ष्य था कि जहां तक संभव हो कांग्रेस दल को सरकार बनाने का अवसर ही नहीं दिया जाना चाहिए और जिन राज्यों में कांग्रेस सरकार का निर्माण हो गया है उन्हें गिराने का सामूहिक रूप से प्रयत्न करना चाहिए, इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए दल परिवर्तन को एक साधन के रूप में अपनाया गया।
जिसके परिणाम स्वरुप एक ऐसी स्थिति आई जब देश के 17 राज्यों में से 9 राज्यों में गैर कांग्रेसी मिश्रित मंत्रीमंडलों का निर्माण हुआ यह भारतीय राजनीति में एक ऐतिहासिक परिवर्तन था, लेकिन कुछ ही दिनों बाद मिश्रित मंत्रिमंडल के पतन की प्रक्रिया आरंभ हुई उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, पंजाब में दल परिवर्तनों के कारण सरकारें तेजी से टूटना शुरू हो गई और राष्ट्रपति शासन की स्थापना शुरू हुई!
दल परिवर्तन का प्रारंभ सबसे पहले हरियाणा में हुआ इसके बाद उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह ने अपने तेरह साथियों के साथ कांग्रेस छोड़कर पहले जन कांग्रेस और फिर भारतीय क्रांति दल के नाम से एक नए राजनीतिक दल का निर्माण किया और कुछ ही दिनों बाद उन्ही के नेतृत्व में एक मिश्रित मंत्रिमंडल का गठन हुआ।